ncert history class 6 chapter 4

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ncert history class 6 chapter 4

आंरभिक जीवन

हड़प्पा की कहानी

 लगभग 150 साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइन बिछाई जा रही थी, तो इस काम में जुड़े इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला। जो वर्तमान समय में पाकिस्तान में है। उन्होंने सोचा था कि यह एक ऐसा खंडहर है, जहाँ से अच्छी ईटे मिलेंगी और इन्होंने इन ईटों का प्रयोग रेलवे लाइन बिछाने में किया। इससे हड़प्पा की कई इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गई।

उसके बाद लगभग 80 साल पहले पुरातत्त्वविदों ने इस स्थल को ढूंढा और उन्हें पता चला कि यह खंडहर उपमहाद्वीप के सबसे पुराने शहरों में से एक है। चूंकि इस नगर की खोज सबसे पहले हुई थी, इसलिए बाद में मिलने वाले इस तरह के सभी पुरास्थलों में जो ये ईमारते और चीजें मिलीं उन्हें हड़प्पा सभ्यता की इमारत कहा गया। इन शहरों का निर्माण लगभग 4700 साल पहले हुआ था।

इन नगरों की विशेषता क्या थी?

इन नगरों में से कई को दो या उससे ज्यादा हिस्सों में विभाजित किया गया था। प्रायः पश्चिमी भाग छोटा था लेकिन उचाई पर बना था और पूर्वी हिस्सा बड़ा था लेकिन  निचले इलाके में था। ऊँचाई वाले भाग को पुरातत्विदों ने नगर दुर्ग कहा है और निचले हिस्से को निचला शहर कहा है। दोनों हिस्सों की चारदीवारी पक्की ईंटों की बनाई जाती थी। इसकी ईंटे इतनी अच्छी थी कि हजारों सालों बाद आज तक उनकी दीवारें खड़ी रही। दीवार बनाने के लिए ईंटों की चिनाई इस तरह करते थे जिससे कि दीवारें खूब मजबूत रहे।

मोहजोदड़ो का स्नानागार

इन नगरों के नगर दुर्ग में कुछ खास इमारतें भी बनाई गई थीं। मिसाल के तौर पर मोहनजोदड़ो में एक खास तालाब बनाया गया था जिसे पुरातत्त्वविदों ने महान स्नानागार कहा है। इस तालाब को बनाने में ईंट और प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया था। इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ से उतरने के लिए सीढ़ियां बनाई गई थी, और चारों और कमरे बनाए गए थे। इसमें भरने के लिए पानी कुएं से निकाला जाता था, उपयोग के बाद इसे खाली कर दिया जाता था। ऐसा माना जाता है कि शायद यहाँ विशिष्ट नागरिक विशेष अवसरों पर स्नान किया करते थे।

  • कालीबंगां और लोथल जैसे नगरों में से अग्निकुंड मिले हैं यहाँ संभवतः यज्ञ किये जाते होंगे।
  • हड़प्पा मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे कुछ नगरों में बड़े बड़े भंडारगृह भी मिलें हैं।

नोट:- ये नगर आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों , भारत के गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब प्रांतों में मिले हैं। इन सभी स्थलों से पुरातत्विदों को अनोखी वस्तुएं मिली हैं: जैसे मिट्टी के लाल बर्तन जिन पर काले रंग के चित्र बने थे, पत्थर के बाट,मुहरे,मनके,तांबे के उपकरण और पत्थर के लंबे ब्लेड आदि।

भवन,नाले और सड़कें

  1. इन नगरों के घर आमतौर पर एक या दो मंजिल होते थे। घर के आंगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे।
  2. अधिकांश घरों में एक अलग स्नानागार होता था और कुछ घरों में कुएं भी होते थे।
  3. कई नगरों में ढके हुए नाले थे। इन्हें सावधानी से सीधी लाइन में बनाया जाता था। हर नाली में हल्की ढलान होती थी ताकि पानी आसानी से बह सके।
  4. घरों की नालियों को अक्सर सड़कों की नालियों से जोड़ दिया जाता था जो बाद में बड़े नालों से मिल जाती थी।
  5. नाली के ढके होने के कारण इनमें जगह जगह पर मेनहोल भी बनाए जाते थे जिनके जरिए इनकी देखभाल और सफाई की जा सके।
  6. घर ,नाले सड़कों को निर्माण योजनाबद्ध तरीके से एक साथ ही किया जाता था।

नगरीय जीवन

हड़प्पा की नगरों में बड़ी हलचल रहा करती होगी। यहां पर ऐसे लोग रहते होंगे, जो नगर की खास इमारतें बनाने की योजना में जुटे रहते थे। जो संभवत  यहां के शासक थे। यहां इन नगरों में लिपिक भी होते थे जो मुहरो पर भी लिखते ही थे और शायद अन्य चीजों पर भी लिखते होंगे जो बच नहीं पाई है।

इसके अलावा नगरों में शिल्पकार स्त्री पुरुष भी रहते थे जो अपने घर या किसी उद्योग स्थल पर तरह-तरह की चीज बनाते होंगे। लंबी यात्राएं भी करते थे वहां से उपयोगी वस्तुएं लाते थे ।यहां से मिट्टी के बने कई खिलौने भी मिले हैं जिससे बच्चे खेलते होंगे।

नगर और नए शिल्प

  • हड़प्पा के नगरों से पुरातत्त्वविदों को जो चीजें मिली हैं, उनमें अधिकतर पत्थर, शंख,ताम्बे, कांसे, सोने और चांदी जैसी धातुओं से बनाई गई थी।
  • तांबे और कांसे से औजार, हथियार , गहनें और बर्तन बनाए जाते थे।सोने और चांदी से गहने और बर्तन बनाए जाते थे।
  • यहाँ सबसे आकर्षक वस्तुओं में मनके, बांट और फलक हैं।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोग पत्थर की मोहरी बनाते थे इन आयात का मुहरों पर एम होते जानवरों के चित्र मिले हैं
  • हड़प्पा सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन की हो गई खूबसूरत लाल मिट्टी के बर्तन भी बनाते थे।

क्या वे पत्थर के बाट बनाते थे?

संभवतः 7000 साल पहले मेहरगढ़ में कपास की खेती होती थी।

मोहनजोदड़ो से कपड़े के टुकड़ों के अवशेष चांदी

के फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबे की वस्तुओ से चिपके हुए मिले हैं।

  • पकी मिट्टी तथा फ्रेयंन्स से बनी तालियां सूत कताई का संकेत देती है
  • इनमें से अधिकांश वस्तुएं वस्तुओं का निर्माण विशेषज्ञों ने किया था। जैसे ही पत्थर तराशना, मनके चमकाना या फिर मुहरों पर पच्चीकारी करना आदि। ऐसा माना जाता है शायद महिलाएं और पुरुष दोनों ही इस काम को करने में दक्ष थे।

फ्रेयंन्स

पत्थर और शंख प्राकृतिक तौर पर पाए जाते हैं , लेकिन फ्रेयंन्स को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है ।बालू या स्फटीक पत्थरों के चूर्ण को गोंद में मिलाकर उनसे वस्तुएं बनाई जाती थी। उसके बाद उन वस्तुओं पर एक चिकनी परत चढ़ाई जाती थी। इस चिकनी परत के रंग प्रायः नीले या हल्के समुद्री हरे होते थे। फ्रेयंन्स से मनके, चूड़ियां, बाले और छोटे बर्तन बनाए जाते थे।

कच्चे माल की खोज में

कच्चा माल उन पदार्थों को कहा जाता है जो या तो प्राकृतिक रूप से मिलते हैं या फिर किसान या पशुपालक उनका उत्पादन करते हैं जैसे लकड़ी या धातु के अयस्क  प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कच्चा माल है।उदाहरण के तौर पर किसानों द्वारा पैदा किए गए कपास को कच्चा माल कहते हैं जिससे बाद में कटाई बुनाई करके कपड़ा तैयार किया जाता था

  • हड़प्पा में लोगों को कई चीजे वही मिलती थी लेकिन तांबा, लोहा सोना चांदी बहुमूल्य पत्थरों जैसे पदार्थों को भी दूर-दूर से आयात करते थे।
  • हड़प्पा के लोग तांबे का आयात राजस्थान और पश्चिम एशियाई देश ओमान से भी करते थे।
  • कांसा बनाने के लिए तांबे के साथ मिलाई जाने वाली धातु टीन का आयात आधुनिक ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
  • सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थर का आयात गुजरात ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।

नगरों में रहने वालों के लिए भोजन:-

लोग नगरों के अलावा गांव में भी रहते थे। वे अनाज उगाते थे और जानवर पालते थे। किसान और चरवाहे ही शहरों में रहने वाले शासको, लेखकों और दस्तकारो को खाने का सामान देते थे।

पौधों की अवशेषों से पता चलता है कि हड़प्पा के लोग गेहूं, जौ, दाले, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे।

हड़प्पा के लोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी पालते थे।

गुजरात में हड़प्पाकालीन नगर का सूक्ष्म निरीक्षण

धौलावीरा:-

  1. कच्छ के इलाके में खदिर बेत के किनारे धोलावीरा नगर बसा था। वहां साफ पानी मिलता था और जमीन उपजाऊ थी।
  2. जहां हड़प्पा सभ्यता के कई नगर दो भागों में विभक्त है वहीं धौलावीरा नगर को तीन भागों में बांटा गया था।
  3. इसके हर हिस्से के चारों ओर पत्थर की ऊंची ऊंची दीवार बनाई गई थी।
  4. इसके अंदर जाने के लिए बड़े-बड़े प्रवेश द्वार थे इस नगर का एक खुला मैदान भी था जहां सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे।
  5. धौलावीरा से मिले अवशेषों में हड़प्पा लिपि के बड़े-बड़े अक्षरों को पत्थरों में खुदा पाया गया है। इन अभिलेखों को लकड़ी मेंजड़ा गया था।

लोथल:-

गुजरात की खंभात की खाड़ी में मिलने वाली साबरमती की एक उपनदी के किनारे बसा लोथल नगर ऐसे स्थान पर बसा था, जहां कीमती पत्थर जैसा कच्चा माल आसानी से मिल जाता था।

  1. यह पत्थरों, शंखों, धातुओं से बनाई गई चीजों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
  2. इस नगर में एक भंडारगृह भी था। इस भंडारगृह से कई मुहरे और मुद्राकन या मुहरबंदी मिले हैं।
  3. यहां से हमें एक इमारत भी मिली है, जहां पर मनके बनाने का काम होता था। पत्थर के टुकड़े,अधबने मनके, मनके बनाने वाले उपकरण और तैयार मनके भी यहां मिले हैं।

मुद्रा और मुद्रांकन या मुहरबंदी

मुहरो का प्रयोग सामान से भरे उन डिब्बो या थैलो को चिन्हित करने के लिए किया जाता होगा, जिन्हें एक जगह से दूसरे जगह भेजा जाता था।थैले को बंद करने के बाद उनके मुहानों पर गीली मिट्टी पोतकर उन पर मुहर लगाई जाती थी। मुहर की छाप को मुहरबंदी कहते हैं।

अगर यह छाप टूटी हुई नहीं होती थी, तो यह साबित हो जाता था, कि समान के साथ छेड़छाड़ नहीं हुई है।

हड़प्पा सभ्यता के अंत का रहस्य

लगभग 3900 साल पहले एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। हम देखते हैं कि अचानक लोगों ने इन नगरों को छोड़ दिया। लेखन, मुहर, और बांटो का प्रयोग बंद हो गया। दूर- दूर से कच्चे माल का आयात काफी कम हो गया था। मोहनजोदड़ो में सड़कों पर कचरे के ढेर बनने लगे । जल निकास प्रणाली नष्ट हो गई और सड़कों पर ही झुग्गीनुमा घर बनाए जाने लगे।

  1. कुछ विद्वानों का कहना है, कि ऐसा इसलिए हुआ शायद नदियां सूख गयी थी।
  2. अन्य का कहना है कि जंगलों का विनाश हो गया था।
  3. इसका कारण यह भी हो सकता है कि ईंटे पकाने के लिए ईंधन की जरूरत पड़ती थी।
  4. मवेशियों के बड़े -बड़े झुंडों से चरागाह और घास वाले मैदान समाप्त हो गए होंगे या कुछ इलाकों में बाढ़ आ गई होगी।
  5. लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सभी नगरों का अंत कैसे हो गया क्योंकि बाढ़ और नदियों के सूखने का असर कुछ ही इलाकों में हुआ होगा। ऐसा लगता है कि शासकों का नियंत्रण समाप्त हो गया। आधुनिक पाकिस्तान के संघ और पंजाब की बस्तियां उजड़ गई थी। लोग दक्षिण के इलाकों में नई छोटी -छोटी बस्तियों में जाकर बस गए।

कुछ महत्वपूर्ण तिथियां

  1. मेहरगढ़ में कपास की खेती (लगभग 7000 साल पहले) होने लगी थी।
  2. नगरों का आरंभ (लगभग 4700 साल पहले) हुआ।
  3. हड़प्पा के नगरों के अंत की शुरुआत (लगभग 2500 साल पहले) हो गयी थी।
  4. अन्य नगरों का विकास (लगभग 2500 साल पहले) हुआ होगा।

अन्यत्र

नील नदी के आसपास वाले इलाकों को छोड़कर मिस्र का अधिकांश भाग रेगिस्तान है।

लगभग 5000 साल पहले मिस्र में शासन करने वाले राजाओं ने सोना, चांदी, हाथीदांत, लकड़ी और हीरे- जवाहरात लाने के लिए अपनी सेनाएँ दूर दूर तक भेजीं। इन्होंने बड़े -बड़े मकबरे बनवाए जिन्हें ‘पिरामिड’ के नाम से जाना जाता है।

राजाओं के मरने पर उनके शवों को इन्हीं पिरामिडों में दफना कर सुरक्षित रखा जाता था। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ और भी अनेक चीजें दफनाई जाती थी। इनमें खाद्यान्न, पेय, वस्त्र, गहने, बर्तन वाद्ययंत्र , हथियार और जानवर शामिल हैं। कभी -कभी शव के साथ उनके सेवक और सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था। दुनिया के इतिहास में शवों को दफनाने की परंपरा को देखते हुए मिस्र में सबसे ज्यादा धन -दौलत खर्च किया जाता था।

 

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