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आरंभिक मानव की खोज में

Chapter – 2

आरंभिक मानव : आखिर वे इधर-उधर क्यों घूमते थे?

 आरंभिक मानव को खाद्य संग्राहक के नाम से जाना जाता हैं। भोजन का इंतज़ाम करने के लिए वे आमतौर पर जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियों और चिड़ियो को पकड़ते थे। पेड़ पौधों से मिलने वाले खाद्य पदार्थ भी उनके भोजन का महत्वपूर्ण स्रोत थे। आरंभिक आखेटक-खाद्य संग्राहक मानव के एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहने के पीछे निम्नलिखित कारण थे:-

  1. अगर मानव एक ही जगह पर ज्यादा दिनों तक रहते तो आस पास के फल, पौधों व जानवरों को खाकर समाप्त कर देते होगे। इसीलिए उन्हें भोजन की तलाश में उन्हें दूसरी जगह पर जाना पड़ता था।
  2. दूसरा कारण यह था कि एक जानवर अपने शिकार के लिए एक जगह से दूसरी जगह पर जाया करते थे तो मानव भी इन्ही जानवरों का शिकार करने के लिए उनके पीछे-पीछे एक जगह से दूसरे जगह पर चले जाते होंगें।
  3. पेड़ और पौधों में फल फूल अलग अलग मौसम में आते हैं, इसलिए लोग उनकी तलाश में मौसम के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते होंगें।
  4. पानी के बिना किसी भी प्राणी का जीवित रहना संभव नहीं है. इसीलिए पानी झीलों झरनों नदियों में ही मिलता है। इनमें जब पानी सूख जाता होगा तो पानी की तलाश में मानव दूसरे स्रोतों की तरफ चल पड़ता होगा।

आरंभिक मानव के बारे में जानकारी कैसे मिलती है ?

हमें कुछ ऐसी वस्तुएं मिली है जिनका निर्माण एवं उपयोग आखेटक खाद्य संग्राहक द्वारा किया गया है। इन लोगों ने अपने लिए पत्थरलकड़ी और हड्डियों से भी औजार बनाएं थे। इनमें से पत्थर के औजार आज भी बचे हुए हैं। इन औजारों की सहायता से मानव फल फूल काटने, मांस काटने, पेड़ों की छाल और जानवरों की खाल उतारने के लिए प्रयोग में लाता होगा। कुछ औजारों से लकड़ी काटी जाती होगी। लकड़ी का उपयोग मानव झोपड़ी बनाने, औजार बनाने और ईंधन के लिए भी किया करता था।

रहने की जगह निर्धारित करना

भीमबेटका आधुनिक (मध्य प्रदेश) से लोगों के रहने के प्रमाण मिले हैं कि इन गुफाओं में लोग रहते थे क्योंकि यहां उन्हें बारिश ,धूप और  हवाओं से राहत मिलती थी ऐसी प्राकृतिक गुफाएं  विंध्य एवं दक्कन के पर्वतीय इलाकों में मिलती है, जो नर्मदा घाटी के पास है।

पुरास्थल

पूरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहां औजार, बर्तन और इमारत जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते हैं। ऐसी वस्तुओं का निर्माण लोगों ने अपने काम के लिए किया था और बाद में वह उन्हें वहीं छोड़ गए। यह जमीन के ऊपर, अंदर, कभी-कभी समुद्र और नदी के तल में भी पाए जाते हैं।

पाषाण औजारों का निर्माण

पाषाण उपकरणों को प्राय दो तरीकों से बनाया जाता था- 

  1. पत्थर से पत्थर को टकराकर:- जिस पत्थर से कोई औजार बनाना होता था, उसे एक हाथ में लिया जाता था, और दूसरे हाथ से  एक पत्थर का हथौड़ी जैसे इस्तेमाल होता था। इस तरह आघात करने वाले पत्थर से दूसरे पत्थर पर तब तक शल्क निकाले जाते थे जब तक वांछित आकार वाला उपकरण न बन जाए।
  2. दबाव शुल्क तकनीक:इसमें क्रोड को एक स्थिर सतह पर टिकाया जाता है और इस क्रोड पर हड्डी या पत्थर रखकर उस पर हथौड़ीनुमा पत्थर से शल्क निकाले जाते हैं जिससे वांछित उपकरण बनाए जाते हैं।

आज की खोज

कुरनूल गुफा से राख के अवशेष मिले हैं।

इससे हमें यह पता चलता है कि आरंभिक लोग आग जलाना सीख गए थे और अपने इस्तेमाल के लिए वे आग का प्रयोग अपने कार्यों के लिए किया करते होंगे जैसे कि प्रकाश के लिए, मांस पकाने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर भगाने के लिए।

बदलती जलवायु

लगभग 12,000 साल पहले दुनिया की जलवायु में बड़े बड़े बदलाव आए और गर्मी बढ़ने लगी। इसी के परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में घास वाले मैदान बनने लगे। इससे हिरण, बारहसिंगा, भेड़, बकरी और गाय जैसे उन जानवरों की जनसंख्या बढ़ी जो घास खाकर जिंदा रह सकते थे

मानव आगे चलकर इन्हें पालने लगा और इनका प्रयोग अपनी जरूरत के लिए करने लगा होगा। इसी दौरान हमें उपमहाद्वीप के भिन्न-भिन्न इलाकों से गेहूं, जौं और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप से उगने के प्रमाण मिले। ऐसा भी माना जाता है शायद महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने इन अनाजों को भोजन के लिए बटोरना भी शुरू कर दिया होगा। शायद यह भी सीख गए होंगे कि अनाज कहां उगते हैं और कब पककर तैयार होते थे। ऐसा करते-करते ही इन अनाजों को खुद पैदा करना सीख गया होगा।

शैल चित्रकला:-

जिन गुफाओं में लोग रहते थे उनकी दीवारों से हमें कुछ चित्र मिले हैं। इनमें मध्य प्रदेश और दक्षिण उत्तर प्रदेश की गुफाओं से मिले चित्र हैं इनमें जंगली जानवरों का सजीव चित्रण किया गया है।

हुंस्गी का सूक्ष्म निरीक्षण:

  1. यहां पर पुरा पाषाण युग के कई पुरास्थल मिले हैं।
  2. यहां से अलग-अलग कार्यों के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले कई प्रकार के औजार मिले हैं।
  3. छोटे पुरास्थलों में भीऔजारोंकेबनाए जाने के प्रमाण यहां से मिले हैं।
  4. अधिकांश औजार चूना पत्थरों से बनाए जाते थे।

नाम और तिथियां

1.पुरापाषाणकाल:- यह दो शब्दों पूरा यानी प्राचीन और पाषाण यानी पत्थर से बना है।

पुरा पाषाण काल 20 लाख साल पहले से 12000 साल पहले के दौरान माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है। 

  1. आरंभिक
  2. मध्य
  3. पूरा पाषाण युग

2.मध्य पाषाण युग:- इस काल में हमें पर्यावरण बदलाव मिलते हैं उसे मेसोलिथ यानी मध्य पाषाण युग कहते हैं। इसका समय 12000 साल पहले से लेकर 10000 साल तक माना जाता है।

इस काल में पाषाण औजार बहुत छोटे होते थे इन्हें माइक्रो लीथयानी लघु पाषाण कहा जाता है।

3.नवपाषाण युग:– इस युग की शुरुआत लगभग 10000 साल पहले से होती है। इसमें मानव के द्वारा पहिए का आविष्कार किया गया।

अन्यत्र

इसमें हम फ्रांस की गुफा को देखते हैं। इस पुरास्थल की खोज लगभग 100 साल पहले चार स्कूल छात्रों ने की थी। इस तरह लगभग 20000 साल पहले से लेकर 10000 साल पहले के बीच बनाए गए चित्र मिले। इनमें कई जानवरों के चित्र थे इनमें जंगली घोड़े, भैंस ,गाय गैडा,रेनडियर, बारहसिंगा और सुअरों को गहरे चमकीले रंगों से चित्रित किया गया है।

इन रंगों को लोह अयस्क और चारकोल जैसे खनिज पदार्थों से बनाया जाता था। यह संभव है कि इन चित्रों को उत्सवों के अवसर पर बनाया जाता था या फिर शिकारियों द्वारा शिकार पर निकलने से पहले कुछ अनुष्ठानों के लिए बनाया गया होगा।

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