ncert history class 6

ncert history class 6 के chapter 1 के बारे में यहां से पढें।

अध्याय – 1

क्या, कब, कहाँ और कैसे ?

 आज हम कल क्या हुआ था, यह जानने के लिए रेडियो, टेलीविजन देख सकते हैं अखबार पढ़ सकते हैं। लेकिन अतीत के बारे में जानने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के स्त्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि अतीत में लोग क्या खाते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, किस तरह के घरों में रहते थे उस समय कौन से खेल खेले जाते थे, कौन सी कहानियाँ सुना करते थे और कौन से नाटक देख सकते थे या फिर कौन से गीत गाते थे।

नर्मदा नदी

  • कई लाख साल पहले से लोग इसी नदी के तट पर रहते थे।
  • यहाँ रहने वाले आरंभिक लोगों में से कुछ कुशल संग्राहक भी थे, जो जंगलों की विशाल सम्पदा से परिचित थे। वे अपने भोजन के लिए जड़ों, फलों जंगल के अन्य उत्पादों का यही से संग्रह क्या करते थे।
  • वे जानवरों का आखेट (शिकार) भी करते थे।

उत्तर-पश्चिम की सुलेमान और गिरधर पहाड़ियां

  1. यहाँ से लगभग 8000 वर्ष पहले स्त्री-पुरुषों ने सबसे पहले गेहूं और जौ जैसी फसलों को उपजाना आरंभ किया था।
  2. यहाँ पर भेड़, बकरी, गाय और बैल जैसे पशुओं को पालतू बनाना भी शुरू किया।
  3. ये लोग गांव में रहते थे।
उत्तर-पूर्व में गारो तथा मध्य-भारत में विंध्य पहाड़िया
  • यहाँ पर कृषि का विकास हुआ।
  • उत्तर में स्थित विंध्य के स्थानों पर ही सबसे पहले चावल को उपजाया गया था।
सहायक नदियां

 सहायक नदियां उन्हें कहते हैं जो एक बड़ी नदी में जाकर मिल जाती है। जैसे सिंधु की सहायक नदियां हैं – झेलम, चेनाब ,रावि, सतलुज और  व्यास।

  • लगभग 4700 वर्ष पूर्व इन्हीं नदियों के किनारे आरंभिक नगर फले-फूले।
  • लगभग 2500 वर्ष पूर्व गंगा व इसकी सहायक नदियों के किनारे व समुद्र तटवर्ती इलाकों में नगरों का विकास हुआ था।

देश का नाम (भारत)

  • अपने देश के लिए हम इंडिया या भारत जैसे नामों का प्रयोग करते हैं। इंडिया शब्द इण्डस से निकला है जिसे संस्कृत में सिन्धु कहा जाता है।
  • लगभग 2500 वर्ष पूर्व उत्तर पश्चिम की ओर से आने वाले ईरानियों और यूनानियों ने सिंधु को हिंदोस अथवा इंदोस कहा।
  • इस नदी के पूर्व में स्थित भूमि प्रदेशों को इंण्डिया कहा।
  • उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिए भरत नाम का प्रयोग किया जाता था। इस समूह का उल्लेख संस्कृत मेंआरंभिक कृति (लगभग 3500 वर्ष पुराने) ऋग्वेद में मिलता है ।बाद में इसका प्रयोग देश के लिए होने लगा।

अतीत के बारे में कैसे जानें ?

अतीत के बारे में जानकारी हम कई तरह से प्राप्त कर सकते हैं इनमें से कुछ जानकारियां निम्नलिखित हैं –

  1. अतीत में लिखी गई पुस्तकों को ढूंढ कर और पढ़ कर।
  2. पांडुलुपियों के द्वाराा भी अतीत को जाना जा सकता है।
  3. अभिलेखों का अध्ययन करके भी हम अतीत के बारे में जान सकते हैं
  4. अतीत में बनी तथा प्रयोग में लाए जाने वाली वस्तुओं का अध्ययन पुरातत्त्वविदों द्वारा किया जाता है।
  5. पुरातत्वविद पत्थरऔर ईंट से बनी इमारतों के अवशेषों ,चित्रों तथा मूर्तियों का अध्ययन करते हैं। वे औजारों हथियारों बर्तनों आभूषणों तथा सिक्कों की प्राप्ति के लिए छानबीन तथा खुदाई भी करते हैं। इससे उन्हें यह जानने में मदद मिलती है कि अतीत में लोग किन चीजों का प्रयोग करते थे  और किस तरह से जीवन व्यतीत करते थे।
  6. पुरातत्वविद खुदाई से मिले स्रोतों का प्रयोग सुराग के रूप में कर अतीत को जानने का प्रयास करता है।

पांडुलिपियां

  1. ये पुस्तक हाथ से लिखी होने के कारण पांडुलिपि कही जाती थी।
  2. अंग्रेजी में पांडुलिपि के लिए मैन्यूस्क्रिप्ट शब्द प्रयोग किया जाता था जो लैटिन शब्दों में मेनू जिसका अर्थ है- हाथ से निकला है।
  3. ये पांडुलिपियाँ प्राय: ताड़ पत्रों तथा हिमालय में उगने वाले भुर्ज नामक पेड़ की छाल से विशेष तरीके के द्वारा तैयार भोजपत्र पर लिखी मिली है।
  4. किताब बनाने के लिए ताड़ के पत्तों को काटकर उनके अलग अलग हिस्सों को एक साथ बांध दिया जाता था।
  5. हमें पांडुलिपियां मंदिरों और विहारों से भी प्राप्त होती है। इन पुस्तकों में धार्मिक मान्यताओं व व्यवहारों, राजाओं के जीवन, औषधियों तथा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषयों की चर्चा मिलती है।
  6. इन पांडुलिपियों में प्राकृतिक तमिल संस्कृत भाषा का प्रयोग भी देखा जा सकता है।

अभिलेख

  • अभिलेख जो पत्थर अथवा धातु जैसी कठोर सतह पर उत्कीर्ण करवाएं जाते थे।
  • कभी कभी शासक और अन्य लोग अपने आदेशों को इस तरह उत्कीर्ण करवातें थे ताकि लोग उन्हें  देख सकें, पढ़ सके और उनका पालन कर सकें। उदाहरणस्वरूप लगभग 2250 वर्ष पुराना अभिलेख वर्तमान अफगानिस्तान के कंधार से प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख अशोक नामक शासक के आदेश पर लिखा गया था।
  • यह अभिलेख इस क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली यूनानी और अरामेइक नामक दो लिपियों तथा भाषाओं में है। लिपियां अक्षरों अथवा संकेतओ से बनी होती हैं।

इतिहास और तिथियां

  1. बी.सी. BC अंग्रेजी में बी सी का तात्पर्य‘बिफोर क्राइस्ट ‘(ईसा पूर्व) होता है।
  2. ए.डी. AD “एनो डोमिनी” नामक दो लैटिन शब्दों से बना है इसका तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के वर्ष से है।
  3. BCE बी.सी.ई बिफोर कॉमन एरा।
  4. बी पी जिसका तात्पर्य बिफोर प्रेजेंट (वर्तमान से पहले) है।

अन्यंत्र

 जैसा की हमने पहले पढ़ा कि अभिलेख कठोर सतह पर उत्कीर्ण करवाये जाते हैं। इसमें से कई अभिलेख कई सौ साल पहले लिखे गए थे।सभी अभिलेखों में लिपियों और भाषाओं का प्रयोग  हुआ है। समय के साथ साथ अभिलेखों में प्रयुक्त भाषाओं  और लिपियों में  बहुत बदलाव आ चुका है। विद्वान यह कैसे जान पाते हैं कि क्या लिखा था ? इसका पता अज्ञात लिपि का अर्थ निकालने की प्रक्रिया द्वारा लगाया जा सकता है।

इस प्रकार से अज्ञात लिपि को जानने की एक प्रसिद्ध कहानी उत्तरी अफ्रीका देश मिस्र से मिलती है ।लगभग 5000 वर्ष पूर्व यहाँ राजा-रानी रहते थे।

मिस्र के उत्तरी तट पर रोसेट्टा नाम का एक कस्बा है। यहाँ से एक ऐसा उत्कीर्णित पत्थर मिला है जिस पर एक ही लेख तीन भिन्न भिन्न भाषाओं तथा लिपियों (यूनानी तथा मिश्र लिपि के दो प्रकारों) में है। कुछ विद्वान यूनानी भाषा पढ़ सकते थे। उन्होंने बताया की यहाँ राजाओं और रानियों के नाम एक छोटे से फ्रेम में दिखाएं गए हैं।  इसे कारतूस कहा जाता है। इसके बाद विद्वानों ने यूनानी और मिस्री संकेतों को अगल बगल रखते हुए मिश्र अक्षरों को समानार्थक ध्वनियों की पहचान की जैसेकि एल अक्षर के लिए शेर तथा ए अक्षर के लिए चिड़िया के चित्र बनाए गए थे।इन्हीं संकेतों के आधार पर पुरातत्त्वविदों ने अभिलेखों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की।

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हमने ncert history class 6 के chapter 1 बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान की है, उम्मीद करते हैं कि आपको ये जानकारी अवश्य पसंद आयी होगी।

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