ncert sst class 6 विविधता एवं भेदभाव

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विविधता एवं भेदभाव

विविधता से हमारा अभिप्राय:-  खानपान, पहनावे, धर्म और भाषा आदि की भिन्नताओं से है। कई बार जो लोग दूसरों से अलग दिखते हैं उन्हें चिढ़ाया जाता है, उनका मजाक उड़ाया जाता है। लोगों के द्वारा उन्हें अपने समूह में शामिल तक नहीं किया जाता है। सोचो अगर हमारे साथ, हमारे दोस्तों के साथ, दूसरे लोग ऐसा व्यवहार करें तो हमें दुख होता है, गुस्सा होता है। हम खुद को इतना असहाय महसूस करते हैं। आपने कभी ऐसा सोचा है, ऐसा क्यों होता है? निम्नलिखित वर्णन के आधार पर हम समझेंगे  की विविधता एवं भेदभाव का समाज पर कैसा प्रभाव पड़ता है।

गैरबराबरी

गैर बराबरी:- असमानता का एक प्रमुख उदाहरण जाति व्यवस्था है। इस व्यवस्था में समाज को अलग-अलग समूहों में बांटा गया और उसी के आधार पर उनके काम को निर्धारित किया गया। लोग जिस जाति में पैदा होते थे, उसे वो बदल नहीं सकते। उदाहरण के लिए -अगर कोई कुम्हार के घर में पैदा हुआ है तो उसकी जाति कुम्हार ही होगी। कोई भी व्यक्ति जाति से जुड़ा अपना पेशा भी नहीं बदल सकता था। इसलिए उसे उस ज्ञान के अलावा किसी अन्य ज्ञान को हासिल करना ज़रूरी नहीं समझा जाता था और ना ही उन्हें इसका अधिकार प्राप्त होता था।अतः इससे ही समाज में एक गैर बराबरी पैदा हुई।

पूर्वाग्रह

  • पूर्वाग्रह जब हम किसी भी व्यक्ति के बारे में पहले से ही कोई राय बना लेते हैं और उसे अपने दिमाग में बिठा लेते हैं, तो वह पूर्वाग्रह का रूप ले लेती है। ज्यादातर ये पूर्वाग्रह नकारात्मक होता है जैसे कि हम किसी के विषय में कहते हैं कि वह व्यक्ति आलसी है, चालाक है, कंजूस है आदि मानना भी पूर्वाग्रह के उदाहरण हैं।
रूढ़िबद्ध धारणा

जब हम किसी के बारे में पक्कीधारणा बना लेते हैं तो उसे रूढ़िबद्ध धारणा कहते हैं। जैसे की किसी खास देश का धर्म  एंव लिंग के होने के कारण किसी को अपराधी, बेवकूफ ठहराना।

रूढ़िबद्ध धारणाओं के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है:

  • किसी समूह के कुछ व्यक्ति के खराब व्यवहार को देखकर उसके पूरे समूह के विषय में एक गलत तरीके की पक्की धारणा बना लेना, रूढ़िबद्ध धारणा के अंतर्गत आता है।
  • ऐसा भी माना जाता है लड़कियां हवाई जहाज उड़ाने का काम नहीं कर सकती।
  • मुसलमानों के बारे में यह आम रूढ़िबद्ध धारणा है की वे लड़कियों को पढ़ाने में रुचि नहीं लेते। इसलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजते।
  • हम लगातार यह भी सुनते आ रहे हैं, कि लड़के ऐसे ही होते हैं और लड़कियां ऐसी होती हैं। लड़के रोते नहीं है। यदि समाज के इन मान्यताओं को हम बिना सोचे समझे मान लेते हैं और उन पर विश्वास कर लेते हैं। अतः यह सब रूढ़िबद्ध धारणाओं के अंतर्गत ही आता है।

भेदभाव

भेदभाव :-  जब लोग अपने से भिन्न प्रथाओं और रिवाजों को निम्न कोटि का मानते है। समाज को जाति व्यवस्था में बांटकर किसी                        खास जाति को ऊपर रखना भेदभाव के अंतर्गत आता है।

दलित

दलित जिसका मतलब है :- दबाया गया, कुचला गया। दलित वह शब्द है जो नीची कहे जाने वाली जाति के लोग अपनी पहचान के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वे इस शब्द को अछूत से ज्यादा पसंद करते हैं। दलितों के अनुसार यह शब्द दर्शाता है कि कैसे सामाजिक पूर्वाग्रह और भेदभाव ने दलित लोगों को दबा कर रखा है सरकार ऐसे लोगों को अनुसूचित जाति के वर्ग में रखती है।

अछूत

समाज में जाति व्यवस्था के पायदान में सबसे नीची वाली सीढ़ी मे अछूत लोगों को रखा जाता था। अछूतों से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्ति जिन्हें छूने भर से ,यहाँ तक कि उनकी परछाई तक को, खुद को श्रेष्ठ मानने वाली जाति के द्वारा अपवित्र माना जाता है।

  • अछूतों के लिए जातिप्रधा के नियम में एकदम निश्चित थे।
  • उन्हें खुद को श्रेष्ठ मानने वाली जाति के द्वारा कुछ निश्चित काम करने की इजाजत थी। जिनमें कुछ समूहों को कचरा उठाने और मरे हुए जानवरों को गांव से हटाने की इजाजत थी। उन्हें ऊंची जाति के लोगों के घरों में घुसने, गांव के कुएं से पानी लेने और यहाँ तक कि मंदिर में घुसने की भी इजाजत नहीं थी।
  • उनके बच्चे दूसरी जाति के बच्चे के साथ स्कूल में बैठ नहीं सकते थे।
  • इन व्यक्तियों को किसी भी तरह के मानवीय अधिकार प्राप्त नहीं थे। इनके साथ पशुओं से भी बद्तर व्यवहार किया जाता था।

छूतों के उद्धार के लिए एक महान नायक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जिन्होंने इन लोगों को मानवीय अधिकार दिए एवं पशुओं से बदत्तर जीवन से छुटकारा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

समानता के लिए संघर्ष

समानता के लिए संघर्ष करने में दलितों, जन-जातीय लोगों और किसानों ने अपने जीवन में जिस गैर बराबरी का अनुभव किया था उनके खिलाफ़ उन्होंने लड़ाई लड़ी। जैसेकि :-

  • दलितों ने संगठित होकर मंदिर में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष किया, पानी के लिए संघर्ष किया।
  • महिलाओं ने मांग की,  कि जैसे पुरुषों को शिक्षा का अधिकार है उन्हें भी शिक्षित होने का अधिकार मिलना चाहिए।
  • किसानोंऔर दलितों ने भी अपने आप को जमींदारों और उनकी ऊंची ब्याज की दर से छुटकारा पाने के लिए संघर्ष किया।

अतः जब देश 1947 में आजाद हुआ, तो हमारे नेताओं ने समाज में व्याप्त जिस  भेदभाव और असमानता का लोगों ने सामना किया था। उसके खिलाफ़ जिस तरह से लोगों ने संघर्ष किया उसको मद्देनजर रखते हुए नेताओं ने संविधान में एक ऐसा लक्ष्य रखा जिसने भारत के सभी लोगों को बराबर माना जाए। सभी के लिये समान अधिकार,समान अवसर प्राप्त हो।

  1. छुआछूत को अपराध की तरह देखा गया और कानूनी रूप से इसे खत्म कर दिया गया।
  2. लोगों को अपनी पसंद का काम चुनने की आजादी दी गई।
  3. सभी लोगों के लिए नौकरियां खुली हुई थी।इनमें जिन समुदायों को समानता के अधिकारों से वंचित रखा गया था उनको फायदा दिलवाने के लिए विशेष कदम संविधान में उठाए गए जिससे उनका सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक विकास हो सके।

 संविधान के निर्माता कहे जाने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने अपने स्वयं के जीवन में भी अस्पृश्यता  जैसी क्रूर प्रथा का सामना करना पड़ा। अतः जब उन्होंने संविधान का निर्माण किया, तो उन्होंने उन सभी लोगों के अधिकारों एवं समानता के अधिकार के लिये विशेष प्रावधान किये जिससे उन्हें किसी भी तरह की असमानता और गैर बराबरी का भविष्य में सामना न करना पड़े।

  • संविधान केअनुसार सभी धर्मों को बराबर का अधिकार दिया गया।
  • भारत को एक धर्म निरपेक्ष देश बनाया गया। जहाँ लोग बिना किसी भेदभाव के किसी भी धर्म का पालन कर सकते है ।
  • संविधान ने लोगों को यह अधिकार दिया है कि लोगों को अपने धर्म का पालन करने ,अपनी भाषा बोलने,अपने त्योहार बनाने और अपने आप को खुले रूप से भी अभिव्यक्त करने की आजादी होनी चाहिए।
  • उन्होंने किसी भी एक भाषा व एक धर्म त्योहार को सबके लिए अनिवार्य नहीं बनाया।

निष्कर्ष

  • उपरोक्त वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि जहाँ असमानता और भेदभाव देश-समाज को अपंग बनाने का कार्य करते है। वहीं समानता देश को विकसित बनाने एवं समाज को एक उज्ज्वल भविष्य देने का काम करती हैं। संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने संविधान के द्वारा सभी लोगों को समान अवसर दिए हैं। जिससे लोगों में किसी भी तरह की असमानता और किसी भी तरह का भेदभाव न रहे।

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