जैन धर्म

जैन शब्द ‘जिन’ से निकला है जिसका अर्थ होता है – इन्द्रियों का विजेता’। जैन धर्मी आत्मा में विश्वास करते हैं परन्तु ईश्वर को नहीं मानते।आत्मा संसार के प्रत्येक कण में  विद्यमान है, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव हो। जैन धर्म की भाषा अर्धमागधी अर्थात् प्राकृत है। जैन  धर्म में गुरुओं को मानते हैं। गुरु को तीर्थंकर कहते हैं। जैन  तीर्थंकर  की संख्या 24 है।

1. ऋषभदेव ( आदिनाथ ),                                        13.  विमलनाथ,   

2. अजितनाथ,                                                          14.  अनन्तनाथ,

3. संभवनाथ,                                                            15.   धर्मनाथ,

4. अभिनन्दन,                                                          16.  शांतिनाथ,

5.सुमितनाथ,                                                            17.  कुन्थुनाथ,

6.पद्मप्रभु,                                                                18.  अरनाथ,

7.सुपाशर्वनाथ,                                                        19.  मल्लिनाथ,

8.चंद्रप्रभु ,                                                                20.  मुनिसुब्रत,

9.सुविधिनाथ,                                                          21.  सेमिनार,

10.शीतलता,                                                            22.  अरिस्टनेमि,

11. श्रेयांसनाथ,                                                          23.  पार्श्वनाथ  ,

12.वासुमूल,                                                              24.  महावीर स्वामी ।                                                   

जैन धर्म के संस्थापक  ऋषभदेव हैं। इनका जन्म अयोध्या में  हुआ  तथा मृत्यु और ज्ञान की प्राप्ति कैलाश पर्वत पर हुई।
जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक – महावीर स्वामी को माना जाता है ।
19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ को लेकर विवाद है कि वे महिला है या पुरुष, श्वेताम्बर उन्हें महिला मानते हैं, जबकि दिम्बम्बर उन्हें पुरुष मानते हैं।
पार्श्वनाथ (23वें तीर्थंकर) 
जन्म स्थान – काशी
पिता का नाम-  अश्वसेन
माता  – वामा
पत्नी – प्रभावती
ज्ञान प्राप्ति – झारखण्ड के सम्मेद शिखर पर हुई थी ।
सम्मेद पर्वत पर कुल  20 लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हुई।
 
 महावीर स्वामी  का जीवन परिचय 
जन्म स्थान – वैशाली कुण्डग्राम में 540BC/599BC में हुआ था ।
जाति- क्षत्रिय
गण- जांत्रिक
बचपन नाम -वर्धमान
पिता का नाम -सिद्धार्थ
माता का नाम- त्रिशला
बडे भाई का नाम- ननन्दिवर्धन
पत्नी का नाम-यशोदा ।
पुत्री का नाम- अणोज्जा प्रियदर्शना
दामाद – जमालि (प्रथम शिष्य) पहला विरोधी रहा ।
ग्रह त्याग- 30 वर्ष
मृत्यु पावा में 72 वर्ष की आयु में हुई थी ।  (468ई.पू.)
नालंदा में 6 वर्ष रहे ।
कैवल्य् प्राप्ति – राजगृह में 42वें  वर्ष में, जूम्भिक ग्राम, ऋजुपालिका नदी किनारे, अशोक (साल) वृक्ष के नीचे ।
पहला उपदेश  राजगृह में  मेघकुमार/जमालि को दिया था ।
जैन धर्म के पांच महाव्रत है ।
जैसे  सत्य,अहिंसा, अस्तेय,  अपरिगृह, ब्रह्मचर्य
पांचवां महाव्रत  ब्रह्मचर्य  महावीर स्वामी के द्वारा जोड़ा गया था । इससे पहले के पार्श्वनाथ के द्वारा प्रतिपादित किये गये थे ।
जैन धर्म के त्रिरत्न हैं- 1.सम्यक श्रध्दा,  2. सम्यक् ज्ञान,    3.सम्यक्  आचरण।

जैन संगीतियाँ (सभा)


छठी शताब्दी ई पू में दो जैन संगीतियाँ हुई थी जैसे :-
प्रथम संगीति
चन्द्र गुप्त मौर्य के शासनकाल में 300 ई पू   पाटलिपुत्र में  की गई थी ।
यह संगीति स्थूलभद्र एवं सम्भूति विजय की अध्यक्षता में की गई थी ।
इस संगीति में जैन धर्म दो भागों  शवेताम्बर और दिगम्बर  में विभक्त  हो गया था ।
 
द्वितीय  संगीति
यह संगीति 512ई. में देवर्धि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में गुजरात में वल्लभी नामक स्थान पर की गई थी। इसमें धर्म ग्रंथों को अंतिम रूप से  संकलन कर इन्हें लिपिबद्ध किया गया।
आज के इस लेख में हमने जैन धर्म पर संक्षिप्त जानकारी प्रदान करने की कोशिश की है, उम्मीद है आपको यह जानकारी अवश्य पसंद आयेगी।
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